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Showing posts from 2020

मीराबाई ने श्री कृष्ण जी की भक्ति क्यों छोड़ी ?

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मीराबाई ने श्री कृष्ण जी की भक्ति क्यों छोड़ी? आज पूरा विश्व हिंदू संतों का लोहा मानता है और इन्ही संतों के नाम पर बहुत से पंथ विदेशों में भी चले हुए हैं। उन्ही संत भक्तों में से एक है मीरा बाई। बहन मीरा बचपन से ही लोकवेद के आधार पर कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। विवाह के थोड़े ही दिन के बाद मीराबाई के पति का निधन हो गया। इस विपत्ति के बावजूद इनकी निष्काम भक्ति दिनोदिन बढ़ती ही चली गई। ये मंदिरों में जाकर वहां मौजूद भक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीरा बाई को जान से मारने की कोशिश करना   भक्त कोई भी हो कड़ा संघर्ष करना ही पड़ता है। मीराबाई का इस तरह मंदिर में जाना और नाचना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। मीराबाई के देवर राणा जी जो अब राजा बन गया था, उसने मीराबाई को कई बार मारने की कोशिश की। कभी जहरीले सांप से तो कभी भयंकर विष पिलाकर। राजा ने मीरा से कहा कि यह विष पी ले अन्यथा तेरी गर्दन काट दी जाएगी। मीरा ने सोचा कि गर्दन काटने में तो पीड़ा होगी, विष पी लेती हूँ। मीरा ने विष का प्याला परमात्मा को याद करके पी लिया। लेकिन उन्हें कुछ नहीं हुआ। जब मीरा बाई

ख़राब शिक्षा पद्धति के कारण ही हो रहा है समाज का पतन

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ख़राब शिक्षा पद्धति के कारण ही हो रहा है समाज का पतन आज हमारा देश तकनीकी रूप से बहुत स्मार्ट हो रहा है। अनेकों उद्योग धंधों का निर्माण हो रहा है परंतु आजकल के युवाओं में भारतीय मूल्यों पर आधारित चरित्र निर्माण की कमी दिखाई दे रही है। भारतीय शिक्षा के पुनरुत्थान के लिए प्राथमिक उच्च प्राथमिक माध्यमिक व उच्च शिक्षा पद्धति मानवीय मूल्यों पर आधारित बनानी होगी।    केवल मनुष्य ही धरती पर एक मात्र प्राणी है जिसमें सोचने समझने के बाद कल्पना की स्वतंत्रता निहित है। इसकी वजह से भौतिक रूप से विश्व का बहुत विकास अनेकों क्षेत्र में जैसे विज्ञान, तकनीक, उद्योग, सेवा इत्यादि में तेजी के साथ हुआ है। राष्ट्र के पुनरुत्थान से पहले मनुष्य का मानसिक विकास होना चाहिए। तभी राष्ट्र का विकास संभव है। विश्व में केवल भारतीय दर्शन है जो हमें सिखाता है कि प्रत्येक मनुष्य भगवान का अंश है, इसलिए हर एक मनुष्य को ईश्वर रूप में देखा जाता है। भारतीय शिक्षा पद्धति है जो यह बताती कि हमारे सुखी होने के लिए संपूर्ण समाज का सुखी होना आवश्यक है। समाज में हो रहे पतन का कारण केवल खराब शिक्षा पद्धति है।  आज  की आवश्यक

मार्कण्डेय ऋषि तथा अप्सरा का संवाद

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एक समय बंगाल की खाड़ी में मार्कण्डेय ऋषि तप कर रहा था। इन्द्र के पद पर विराजमान आत्मा को यह शर्त होती है कि यदि उसके शासनकाल में 72 चैकड़ी युग के दौरान यदि पृथ्वी पर कोई व्यक्ति इन्द्र पद प्राप्त करने योग्य तप या धर्मयज्ञ कर लेता है और उसकी क्रिया में कोई बाधा नहीं आती है तो उस साधक को इन्द्र का पद दे दिया जाता है और वर्तमान इन्द्र से वह पद छीन लिया जाता है। इसलिए जहाँ तक संभव होता है, इन्द्र अपने शासनकाल में किसी साधक का तप या धर्मयज्ञ पूर्ण नहीं होने देता। उसकी साधना भंग करा देता है, चाहे कुछ भी करना पड़े। जब इन्द्र को उसके दूतों ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में मार्कण्डेय नामक ऋषि तप कर रहे हैं। इन्द्र ने मार्कण्डेय ऋषि का तप भंग करने के लिए उर्वसी (इन्द्र की पत्नी) भेजी। सर्व श्रंगार करके देवपरी मार्कण्डेय ऋषि के सामने नाचने-गाने लगी। अपनी सिद्धि से उस स्थान पर बसंत ऋतु जैसा वातावरण बना दिया। मार्कण्डेय ऋषि ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई। उर्वसी ने कमर का नाड़ा तोड़ दिया, निःवस्त्रा हो गई। तब मार्कण्डेय ऋषि बोले, हे बेटी!, हे बहन!, हे माई! आप यह क्या कर रही हो? आप यहाँ गहरे जंगल में अकेली

कालू झींमर की कथा

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कालू झींमर नामक एक मछुआरा था। वो जिस गांव मे रहता था उस के आसपास के तालाब की सारी मछलियां पकड चुका था तो उसने पडोसी राज्य की सीमा में जा कर मछली पकडने की सोची इसलिये जल्दी सुबह उठकर पडोस के राज्य की सीमा मे चला गया उसे यह भी पता था उस देश का राजा जीव हिंसा पर प्रतिबन्ध लगा रखा था कि कोई शिकार ना करे । सुबह सुबह वो तालाब किनारे‌ पहुंच गया और आग लगाकर हाथ तापने लग गया ताकी कोई आस पास देख रहा हो तो आ जाये उसने कुछ देर हाथ तापकर जल में जाल फेंकने वाला ही था कि पीछे से राजा हाथी पर सवार होकर आता दिखा यह देख वह बहुत डर गया और राख अपने शरीर पर रगड वही आग के पास समाधी लगाकर बैठ गया जैसे कोई संत समाधी लगा रहा हो । राजा उसे देख नजदीक आया और साधू समझ उसे प्रणाम किया राजा को लगा साधू ध्यान में है इसलिये इनका ध्यान ना टूटे इसलिये उसने प्रणाम कर 5 सोने की मोहरे रखकर आगे निकल गया जब कालू झींमर समाधी मे चला गया तो उसकी पत्नी उसे खोजते हुये वहां आयी और उसे जगाया कालू झींमर समाधी से जागा तो उसने देखा कि 5 मोहरे राजा रखकर गया वो सोचने लगा मैने झूठ मूठ मे भक्त बनने‌ का नाटक करा तो भी भगवन ने मेरी रक्

जीवन रक्षक परमात्मा

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ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में प्रमाण है कि परमात्मा अपने भक्तों के संकट निवारण करता है। यदि मृत्यु भी आ जाए तो भी उसको टालकर अपने भक्त को जीवित करके सौ वर्ष जीवन प्रदान कर देता है। परमात्मा कबीर साहेब पाप विनाशक हैं यजुर्वेद अध्याय 8 मन्त्र 13 में कहा गया है कि परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है। संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेने व मर्यादा में रहने वाले भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं।

कबीर साहेब द्वारा गरुड़ को तत्वज्ञान उपदेश

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परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को उपदेश दिया, उसको सृष्टि रचना सुनाई। अमरलोक की कथा सत्यपुरूष की महिमा सुनकर गरूड़ देव अचम्भित हुआ। अपने कानों पर विश्वास नहीं कर रहे थे। मन-मन में विचार कर रहे थे कि मैं आज यह क्या सुन रहा हूँ? मैं कोई स्वपन तो नहीं देख रहा हूँ। मैं किसी अन्य देश में तो नहीं चला गया हूँ। जो देश और परमात्मा मैंने सुना है, वह जैसे मेरे सामने चलचित्रा रूप में चल रहा है। जब गरूड़ देव इन ख्यालों में खोए थे, तब मैंने कहा, हे पक्षीराज! क्या मेरी बातों को झूठ माना है। चुप हो गये हो। प्रश्न करो, यदि कोई शंका है तो समाधान कराओ। यदि आपको मेरी वाणी से दुःख हुआ है तो क्षमा करो। मेरे इन वचनों को सुनकर खगेश की आँखें भर आई और बोले कि हे देव! आप कौन हैं? आपका उद्देश्य क्या है? इतनी कड़वी सच्चाई बताई है जो हजम नहीं हो पा रही है। जो आपने अमरलोक में अमर परमेश्वर बताया है, यदि यह सत्य है तो हमें धोखे में रखा गया है। यदि यह बात असत्य है तो आप निंदा के पात्रा हैं, अपराधी हैं। यदि सत्य है तो गरूड़ आपका दास खास है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास ज

तत्वज्ञान उपदेश

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कबीर साहेब का गोरखनाथ जी के साथ ज्ञान चर्चा  जब कबीर साहिब की उम्र पांच वर्ष की थी तब गुरु गोरखनाथ ने उनसे ज्ञान चर्चा करते हुए उनकी आयु के बारे में सवाल किया था तब कबीर साहिब ने यह जवाब दिया था । जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी। असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।। कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी। हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।। (करोड़ों निरंजन मर चुके हैं) अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।  (49करोड़ श्रीकृष्ण,7करोड़ शिवजी मर चुके हैं) कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।  देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।। नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी। कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।। (मेरी कोई उम्र नहीं है) ज्ञात रहे :-कबीर साहेब ने किसी माँ की पेट से जन्म नहीं लिया था प्रकाश का गोला आसमान से आया और कमल के फूल पर बच्चे के रुप में परवर्तित हो गया था। मृत्यु के वक्त भी उनका शरीर नहीं मिला शरीर के स्थान पर केवल सुगंधित फूल मिले थे॥ हम ही अलख अल्लाह है,कुतूब गौस और पीर। गरीबदास खालिक धनी हमरा

दान की महिमा

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गरीब, धना भगति की धुनि लगी, बीज दिया जिन दान।                 सूखा खेत हरा हुवा, कांकर बोई जान।। 🌹‘‘धन्ना भक्त के खेत में कंकर से ज्वार पैदा हुई’’🌹 राजस्थान प्रान्त में एक जाट जाति में धन्ना नामक भक्त था। गाँव में बारिश हुई। सब गाँव वाले ज्वार का बीज लेकर अपने-अपने खेतों में बोने के लिए चले। भक्त धन्ना जाट भी ज्वार का बीज लेकर खेत में बोने चला।  रास्ते में चार साधु आ रहे थे। भक्त ने साधुओं को देखकर बैल रोक लिए। खड़ा हो गया। राम-राम की । साधुओं ने बताया कि भक्त! दो दिन से कुछ खाने को नहीं मिला है। प्राण जाने वाले हैं। धना भक्त ने कहा कि यह बीज की ज्वार है। आप इसे खाकर अपनी भूख शांत करो। भूखे साधु उस ज्वार के बीज पर ही लिपट गए। सब ज्वार खा गए। भक्त का धन्यवाद किया और चले गए। धन्ना भक्त की पत्नी गर्म स्वभाव की थी। भक्त ने विचार किया कि पत्नी को पता चलेगा तो झगड़ा करेगी। इसलिए कंकर इकट्ठी करके थैले में डाल ली जिसमें ज्वार डाल रखी थी। भक्त ने ज्वार के स्थान पर कंकर बीज दी। लग रहा था कि जैसे ज्वार बीज रहा हो। धन्ना जी भी सब किसानों के साथ घर आ गया। दो महीने के पश्चात् सब किसान