कालू झींमर की कथा

कालू झींमर नामक एक मछुआरा था। वो जिस गांव मे रहता था उस के आसपास के तालाब की सारी मछलियां पकड चुका था तो उसने पडोसी राज्य की सीमा में जा कर मछली पकडने की सोची इसलिये जल्दी सुबह उठकर पडोस के राज्य की सीमा मे चला गया उसे यह भी पता था उस देश का राजा जीव हिंसा पर प्रतिबन्ध लगा रखा था कि कोई शिकार ना करे ।

सुबह सुबह वो तालाब किनारे‌ पहुंच गया और आग लगाकर हाथ तापने लग गया ताकी कोई आस पास देख रहा हो तो आ जाये उसने कुछ देर हाथ तापकर जल में जाल फेंकने वाला ही था कि पीछे से राजा हाथी पर सवार होकर आता दिखा यह देख वह बहुत डर गया और राख अपने शरीर पर रगड वही आग के पास समाधी लगाकर बैठ गया जैसे कोई संत समाधी लगा रहा हो । राजा उसे देख नजदीक आया और साधू समझ उसे प्रणाम किया राजा को लगा साधू ध्यान में है इसलिये इनका ध्यान ना टूटे इसलिये उसने प्रणाम कर 5 सोने की मोहरे रखकर आगे निकल गया जब कालू झींमर समाधी मे चला गया तो उसकी पत्नी उसे खोजते हुये वहां आयी और उसे जगाया कालू झींमर समाधी से जागा तो उसने देखा कि 5 मोहरे राजा रखकर गया वो सोचने लगा मैने झूठ मूठ मे भक्त बनने‌ का नाटक करा तो भी भगवन ने मेरी रक्षा की और मोहरे दिलाई ।

कबीर ,
जो कोई आवे कपट से , उसको भी अपनाऊ ।
साम दाम दण्ड भेद से , सीधे रस्ते लाऊ ।।

 अब तो मै भगवन की भक्ति ही करूंगा वो 5 मोहरे पत्नी को दे कर बोला यह रखो यह बीस साल खर्च कर के भी ना खर्च हो मै अब मछली नही पकडुंगा यह कहकर वो दोनो घर आ गये पत्नी बोली देखो जी कमाई हो ना हो पर काम तो करते रहना चाहिये । इसलिये वो रोज खाना लेकर जंगल में चला जाता और जो बन पाती भगवन‌ का नाम लेता तब उसकी ऋद्धा देख कबीर परमेश्वर एक संत रूप में आये और उसे ज्ञान और दीक्षा दी कालू झींमर को कालू भगत बना दिया ।

गरीब , गोता मारू स्वर्ग मे , जा पेठू पाताल ।
गरीबदास ढूंढत फिरू , अपने हीरे माणक लाल ।।

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